शुक्रवार, 15 अक्तूबर 2010
Audio post: X Factor - क्या मुझ में है ?
यह एक ऑडियो पोस्ट है, science blogger's par अल्पना जी की पोस्ट को देखा तो सोचा प्रयत्न कर के देखा जाये|
आवाज़ उनकी तरह मधुर तो नहीं है, फिर भी कोशिश की है, आप ही बताइए कि आपको कैसा लगा, जिससे अपने बाकी सभी ब्लॉग के साथ ऑडियो भी जोड़ सकूं |
सोमवार, 2 अगस्त 2010
आई आई टी इंटरव्यू (दूसरी कड़ी) - मैं और मेरी अंग्रेजी
आपने सुना तो होगा ही "अंग्रेज चले गए और अंग्रेजी छोड़ गए", सही है यार बहुत तंग करती है ये अंग्रेजी मुझे, एक मस्त वाकया हुआ मेरे साथ इस अंग्रेजी के वजह से और वो भी बहुत महत्त्वपूर्ण समय पर-
तो कहानी शुरु होती है पिछली कहानी से आगे, मैं आई आई टी में बैठे हुए, इंटरव्यू के लिए अपने बुलावे का इन्तजार कर रहा था, आखिर मेरा नंबर आ गया, देखता हूँ कि इंटरव्यू लेने के लिए कुल सात लोग बैठे हुए हैं, एक तो वैसे ही पिछली घटना से थोडा सा नर्वस था और ऊपर से इंटरव्यू में सात लोग, वैसे एक बात मेरे पक्ष में थी कि आज तक के मेरे रिकॉर्ड में मेरा इंटरव्यू कभी ख़राब नहीं गया था, तो में आश्वस्त था |
इंटरव्यू पेनल ने मुझे एक पेपर दिया और बोले कि इस पर लिख दीजिये कि वो कौन सी चीज़ है जो आपको "Educational Technology" में कार्य करने के लिए प्रेरित करती है, मुझे १० मिनट का समय दिया गया सो में पेपर और पेन लेकर बैठ गया लिखने और जो कुछ मैंने लिखा वो कुछ इस प्रकार था
Recently I created a video book of C programming language for engineering students. At the time of creating that book I never think about it's effectiveness, but after it launched students like it and it's extremely beneficial for them.
This comes me to an idea that by creating such kind of video books we can solve the problem of education in India. In villages & towns where teachers are almost zero, this idea can work better and after that I contact with many teachers and tell them the process of creating the video tutorials. But what I find is most of the teachers are unaware of technology and can't create Video Book.
After that I research for the tools that can help teachers, after all I can't create video tutorial for each subject. During research on tools I realize that a Geek person can not use these tools, because they are very heavy to use. There should be some tools available for geek persons so that they can use it with ease and effectiveness. These tools should be the mixture of technology as well as concept of education. That creates interest about Educational Technology.
After or during my Ph.D I want to create tools for geeks so that the problem of education in India can be solved.
यह लिखने के बाद मैंने इंटरव्यू पेनल को दिया, सभी ने पढ़ा और मन ही मन हँसे, फिर कुछ सबाल पूछे जैसे कि -
- M.TECH. में क्या project था?
- जहाँ job कर रहे थे वहां किस technology पर कार्य किया?
- family background कैसा है?
- अच्छी खासी job छोड़ कर यहाँ क्यूँ आना चाहते हो?
- कितने साल और नहीं कमाओगे तो भी चलेगा? वगैरह वगैरह
सब कुछ अच्छा चल रहा था, और अभी तक कोई भी परेशानी नहीं आयी थी, पर ये तो होना ही था सो हो गया, सबसे आखिर में मुझसे पूछा गया कि आपने अपने statement of purpose (जो मैंने ऊपर इंग्लिश में प्रकाशित किया है) में कई बार GEEK शब्द का प्रयोग किया है, इसका अर्थ क्या होता है?
"मैंने कहा कि इसका अर्थ है वह व्यक्ति को कि technology से अनभिज्ञ हो, उसको उसका इस्तेमाल नहीं आता हो", तब मुझे बताया गया कि इसका अर्थ इसके बिलकुल विपरीत होता है अर्थात वह व्यक्ति जो technology के बारे में लगभग हर चीज़ जानता है वह GEEK होता है, फिर क्या मैं भी हँसा और पूरा इंटरव्यू पेनल भी |
आप ही बताइए कि क्या करूं में मेरी अंगरेजी का? Simple batra जी से थोड़े से टिप्स लिए थे पर जरा भारी हैं, मैं उनको प्रयोग में नहीं ला सकता आपके पास कुछ हो तो जरूर बताइए, पर याद रखिये आप अंगरेजी में GEEK होने चाहिए :)
इस इंटरव्यू का परिणाम क्या रहा बाद में बताता हूँ -
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मेरी पिछली कुछ टिप्पणियों में आप ओपन पत्रिका के बारे में पढ़ रहे होंगे, आपसे गुजारिश है कि ओपन पत्रिका में अपना बहुमूल्य योगदान जरूर दें, पूरे महीने में यदि आप एक लेख भी लिख सकते हैं तो भी हम क्रांति ला सकते हैं, आप कुछ और नहीं कर सकते तो काम से काम इतना तो कर ही सकते हैं कि अपने हर लेख में यह जानकारी शामिल कर दें जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक यह जानकारी पहुंचे और हम बेहतर परिणाम ला सकें - धन्यवाद |
रविवार, 1 अगस्त 2010
आई आई टी में इंटरव्यू
रविवार का दिन था, पूरी तरह से मस्ती के मूड में था, मूड में होने वाली बात ही थी एक दिन पहले आई आई टी में Ph.D. में प्रवेश के लिए मैंने लिखित परीक्षा दी थी, काफी अच्छा कर के आया था और पूरी उम्मीद थी कि इंटरव्यू के लिए मुझे चुन लिया जायेगा |
यूँ तो रविवार को अवकाश होता है पर उस दिन मुझे CDAC में disaster recovery के प्रोजेक्ट में कुछ कार्य करने के लिए जाना था, काम करने में मुझे दिक्कत नहीं थी, पर सुबह से ही बहुत अलग किस्म का डर लग रहा था, एक अलग सी बैचैनी का अनुभव हो रहा था, इसलिए कोई भी काम नहीं कर पा रहा था |
रह-रह कर एक ही डर लग रहा था कि कहीं मेरा इंटरव्यू छूट ना जाये | मैंने अपने इस डर को शांत करने के लिए आई आई टी में फ़ोन किया पर रविवार होने की वजह से सभी छुट्टी पर थे और मेरा आई आई टी से संपर्क नहीं हो पा रहा था | मेरे साथ CDAC में कार्य करने वाले ओमपाल जी आई आई टी में ही रहते हैं, सो मैंने उनको संपर्क करने का प्रयत्न किया पर उनका फ़ोन व्यस्त जा रहा था और मेरा डर बढ़ता ही जा रहा था, जैसे-जैसे समय निकल रहा था मेरा मन और अधिक बैचैन होता जा रहा था |
आई आई टी में संपर्क करने की मेरी सभी कोशिशें व्यर्थ जा रही थी | घड़ी की सुइयां साढ़े तीन बजा रहीं थीं, और मुझे संपर्क करने का कोई भी रास्ता नहीं मिल रहा था| अचानक मेरे दिमाग की घंटी बजी, मैंने सीधे उस विभाग में ही संपर्क करने का निर्णय लिया जिस विभाग में प्रवेश के लिए मैंने प्रवेश परीक्षा दी थी, अंतरजाल (इन्टरनेट) से सम्बंधित विभाग का फ़ोन नं मिल गया, वहां संपर्क किया तो पता चला कि इंटरव्यू सुबह नौ बजे से चल रहे हैं, और मैं लिखित परीक्षा में पास भी हो गया हूँ, सबसे पहले मेरा ही इंटरव्यू होना था अतः मेरा नंबर निकल चुका है, मैंने उनको स्थिति से अवगत कराया तथा पूछा कि क्या मुझे अब इंटरव्यू में बैठने की इजाजत मिल सकती है? उधर से हाँ सुनने के बाद मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा| घड़ी की सुइयां ३:४० का इशारा कर रहीं थीं, और जहाँ में रहता था (खारघर ) वहां से आई आई टी तक पहुँचने में कम से कम डेढ़ घंटे का समय लगता है, तब तक इंटरव्यू समाप्त हो चुके होंगे और में यह सुनहरा अवसर गँवा दूंगा, मैंने तुरंत खारघर टेक्सी को फ़ोन मिलाया और एक टेक्सी बुक करवाई, ऑफिस से घर पहुंचा, कपडे बदले तब तक टेक्सी आ चुकी थी|
एक सरदार जी ड्राईवर थे, मैंने सरदार जी को स्थिति से अवगत कराया तथा उनको बोला कि "आधे घंटे में या तो आई आई टी पहुँचाओ नहीं तो ऊपर पर उससे पहले अब गाडी को रोकना नहीं", सरदार जी ने और ट्रेफिक ने मेरा साथ दिया और ठीक ४:३० पर मैं आई आई टी में था, सरदार जी को विदा करके अन्दर पहुंचा तो पता चला कि अभी २ लोग इंटरव्यू के लिए बचे हैं, और उनके बाद मेरा नंबर आएगा | मैंने ऊपर वाले का शुक्रिया अदा किया और यथा स्थान बैठ गया |
इंटरव्यू भी कम दिलचस्प नहीं था, मेरी अंग्रेजी की जरूरत से ज्यादा जानकारी मार गयी, पर वो किस्सा अगली पोस्ट में अभी बस इतना ही|
शनिवार, 31 जुलाई 2010
सोमवार, 28 जून 2010
नारी: ताड़ना की अधिकारी?
मैंने कई लोगो से यह सवाल पूछा है पर आज तक किसी भी जबाब से संतुष्ट नहीं हुआ, तो मैंने सोचा कि क्यूँ ना आप से पूछ लिया जाये |
एक दोहा है, आप सभी ने सुना होगा, जाने माने संत ने लिखा है तो इस के खिलाफ बोलना भी ठीक नहीं लगता, हो सकता है कि वो कुछ और अर्थ देना चाहते हो पर मेरी छोटी बुद्धि में तो सिर्फ सीधी बात समझ में आती है, दोहा इस प्रकार है -
ढोल, गंवार, शुद्र, पशु, नारी सकल ताड़ना के अधिकारी
जिसका अर्थ मेरी नज़र में है- ढोलक, अनपढ़ (जिसको कोई अक्ल ना हो), शुद्र यानि छोटे कार्य करने वाले लोग (इसका अर्थ चोर, गुंडे, बदमाश जैसे मनुष्यों से हो सकता है), जानवर तथा महिला (स्त्री) सिर्फ और सिर्फ प्रताड़ना के अधिकारी है |
अब जहाँ तक मेरी बात है में अनपढ़ तथा महिला को सकल ताड़ना का अधिकारी नहीं मान सकता, मैं सोच ही नहीं सकता, पर ऐसा भी हो सकता है कि मैं इसका अर्थ गलत निकाल रहा हूँ |
यदि आप में से किसी को इसका सही अर्थ पता हो तो जरूर लिखे - धन्यवाद
गुरुवार, 20 मई 2010
मंगलवार, 18 मई 2010
Dragon वश में
एक बच्चा है, बच्चे की बात कहाँ कोई मानता है, उसकी भी नहीं मानते कोई उसकी बात नहीं सुनता. वो अपने कई साल पुराने खानदान में ऐसा पहला है जो DRAGON को मार नहीं सकता, मौका मिलने पर भी नहीं | उसको खुद पर शर्म आती है, उसको डर लगता है कि लोग उसका मजाक बनायेंगे, पर कुछ ऐसा होता है कि लोग उसकी तारीफ करने लगते हैं, वह अपने पूरे खानदान में पहला ऐसा युवक बन जाता है जो dragon को अपना दोस्त बना लेता है, ठीक ऐसे ही जैसे हमने कई जानवरों को अपना मित्र बना लिया है |
कहानी में कई मोड़ आते हैं, जो आपको बांधे रखते हैं, अंत में वह युवक (बच्चा) कुछ ऐसा करता है जो इंसानों और dragon दोनों के लिए अच्छा होता है, और इंसान और dragon हमेशा साथ साथ रहने लगते हैं | कहानी ख़त्म |
बच्चों के लिए बहुत दिनों बाद कोई अच्छी फिल्म आई है, पर इसका अर्थ यह कतई नहीं है कि बड़ों को इस फिल्म में मजा नहीं आएगा | मेरी राय है कि आप जायें, साथ में अपने पूरे परिवार को भी ले कर जायें - आखिर मजा सब के साथ आता है :)
सोमवार, 10 मई 2010
संवेदना-शून्य समाज की ओर
कुछ समय पहले मेरे नाना-नानी मुंबई मेरे पास आये हुए थे. मैं उनको घुमाने के लिए अटरिया माल (साउथ मुंबई ) ले कर गया | वहां पर एक घटना घटी, जो मेरे लिए साधारण थी पर नानी जी के लिए असाधारण, मेरे लिए साधारण इसलिए थी क्यूंकि मैं शायद संवेदना हीन समाज का एक हिस्सा बन चुका हूँ या फिर ज्यादा समझदार हो चुका हूँ और समझता हूँ कि कभी कभी संवेदन हीनता भी बरतनी पड़ती है |
घटना -
हुआ ये कि जब अटरिया माल मे प्रवेश किया तो guards ने metal-detectar से तलाशी ली, उनका तलाशी लेना मेरे लिए साधारण बात थी, मै समझता हूँ कि लगातार होती घटनाओं को रोकने के लिए इस तरह की भीड़ भरी जगह पर तलाशी लेने मे कोई बुरे नहीं है, पर नानी कैसे समझती, उनके साधारण से मन को यह बिलकुल भी बर्दास्त नहीं हुआ कि कोई उनकी तलाशी ले, ६८ बसंत पार कर चुकी नानी ने दूसरे के सोने को भी मिटटी ही समझा, उनका मन यह कैसे बर्दास्त करता कि कोई उन पर शक करे और तलाशी देने को कहे, छोटे शहरों में किसी की तलाशी लेने का मतलब उसको अपमानित करना होता है, और उनको यह सरासर अपमान लगा, उन्होंने गार्ड से यही कहा कि -
"लला (बेटा) हम ऐसो कोई काम नाही करत है कि कोई हम पे ऊँगली ओ उठावे "
उनकी बात ने मुझे यह सोचने पर मजबूर किया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि हम आतंकवाद, अपराध इत्यादि को रोकने के लिए कुछ ऐसी व्यवस्था कायम कर रहे हैं जो हमें संवेदना शून्य बना रही है ? इस सवाल की तलाश में जब मैंने थोडा सा सोचना प्रारंभ किया तो मैंने पाया कि अगर पिछले 50 सालों पर नज़र डाली जाये तो अब हम लोग पहले के मुकाबले ज्यादा संवेदना-शून्य हो गए हैं.
मैं अपनी बात को सिद्ध करने के लिए निम्नलिखित तथ्य प्रस्तुत कर रहा हूँ -
- खबरें - आप आज का अखबार खोलिए, उसमे चोरी, बलात्कार, मारपीट इत्यादि दुखद घटनाएं मिलेंगी, पर क्या आप वाकई उन घटनाओं को पढ़ते हैं, और अगर पढ़ते भी है तो क्या अफ़सोस भी करते हैं ? शायद नहीं क्यूंकि यह अब आम बात हो गयी है, आजकल हमारे समाज में चोरी होना, बलात्कार होना आम बात हो गयी है, जैसे यह हमारे जीवन में शामिल ही हो, जब सुबह अखबार खोलते हैं तो हम यह मान कर ही चलते हैं कि इस तरह की घटनाएं तो होंगी ही, और कुछ नयी तरह की खबरों को अखबार में खोजते हैं, जबकि पहले ऐसा नहीं था, मुझे याद है कि आगरा में जब सुबह-सुबह घर पर अखबार आता था तो इस तरह की खबरों को खास तबज्जो डी जाती थी, इस पर बहस होती थी और बुरे काम करने बालों को कोसा जाता था, पर आज ऐसा नहीं है, हम संवेदना-शून्य समाज की ओर अग्रसर हो रहे हैं.
- दुर्घटनाएं- मान लीजिये कि आप सड़क पर जा रहे हैं और आपके सामने एक भीड़ लगी हुई है, आप या तो रुकेंगे ही नहीं, और अगर रुकेंगे भी तो किसी से पूछेंगे कि क्या हुआ, जबाब मिलेगा कि दुर्घटना हो गयी है कुछ लोगों को बहुत चोट आई है, आप अफ़सोस जताएंगे और अपने काम पर चले जायेंगे... क्या पहले ऐसा होता था ?
- आवाजें - आप घर पर बैठे है, चाय पी रहे है, अचानक आपकी बिल्डिंग के नीचे से ambulance के siren सुनाई देते हैं, क्या आप बहार निकलते हैं, यह देखने के लिए को कहीं आपके पड़ोस की बिल्डिंग में ही आग तो नहीं लग गयी? क्या आपके मन में विचार आता है कि कुछ लोगो को आपकी मदद की जरूरत हो सकती है ?
कहीं ऐसा ना हो कि एक दिन हमारे अंदर की सारी संवेदना समाप्त हो जाये, और हम लोग दूसरों की परवाह करना ही छोड़ दें | हमेशा याद रखिये एक दिन हमको भी किसी की जरूरत पड़ सकती है, और जब हम किसी की मदद नहीं करते तो किसी और से उम्मीद भी नहीं कर सकते |
रविवार, 9 मई 2010
बदमाश कंपनी
कलाकार : शाहिद कपूर, अनुष्का शर्मा, वीर दास, मियांग चांग, अनुपम खेर, पवन मल्होत्रा
फिल्म के बारे में : ठीक ठाक ( २ स्टार )
कहानी : 4 दोस्त हैं, 3 लड़के और एक लड़की, चारों को जल्दी है, अमीर बनने की.
करण (शाहिद कपूर) MBA नहीं करना चाहता, MBA करने के बाद JOB करनी पड़ेगी, सुबह 9:00 से 5:00 की JOB पसंद नहीं है | बिज़नस करना चाहता है, चंदू (वीर दास) को लड़कियों और फिल्मो का शौक है, जिंग (चांग) को शराब का शौक है और बुलबुल (अनुष्का) को मोडलिंग का |
शौक पूरा करने के लिए पैसा चाहिए, पैसा कैसे आएगा? स्मगलिंग से, ये लोग drugs की स्मगलिंग नहीं करते, Dollars की स्मग्लिंग करते हैं, खैर पैसा आता है, शौक पूरे होते है, लत बढ़ती जाती है, अब पैसा कमाने के लिए कपूर खुद नए-नए आईडिया बनता है और रुपये कमाता है. अब जब पैसा आएगा तो दिमाग भी ख़राब होंगे, चारोँ दोस्तों में लड़ाई हो जाती है, और सभी कपूर को छोड़ के चले जाते हैं, बिज़नस ख़त्म, पैसा ख़त्म, अब शुरु होते हैं बुरे दिन, पुलिस 420 के केस में कपूर को अन्दर करती है |
घटनाएं होती हैं, और अंत में सभी लोग मिल जाते हैं, बुरे दिन सुधर जाते है |
क्यूँ देखें : अगर आपको ठगी के नए नए आईडिया चाहिए तो |
क्यूँ ना देखें : फिल्म का दूसरा हिस्सा बहुत लम्बा कर दिया गया है, emotional scene पर हँसी आती है | ओवर एक्टिंग बहुत ज्यादा है, संवाद और घटनाएं एक दूसरे से गुंथी हुई नहीं है
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